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RTI की धारा 30: केंद्र सरकार को कठिनाइयों को दूर करने की शक्ति | RTI Act Section 30

HANUMAN
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सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 30

कठिनाइयों को दूर करने की शक्ति (Power to remove difficulties)

यह धारा केंद्र सरकार को यह विशेष शक्ति देती है कि यदि आरटीआई अधिनियम को लागू करने में कोई अप्रत्याशित कठिनाई आती है, तो सरकार उसे दूर करने के लिए आवश्यक प्रावधान बना सकती है। इसका उद्देश्य अधिनियम के कार्यान्वयन में आने वाली बाधाओं को दूर करना है, ताकि कानून प्रभावी बना रहे। हालांकि, यह शक्ति सीमित है और अधिनियम के लागू होने के बाद केवल दो साल तक ही इसका उपयोग किया जा सकता है।

1. कठिनाइयों को दूर करने की शक्ति (धारा 30(1))

मूल पाठ (हिंदी): यदि इस अधिनियम के उपबंधों को प्रभावी करने में कोई कठिनाई उत्पन्न होती है तो केंद्र सरकार राजपत्र में प्रकाशित आदेश द्वारा ऐसे उपबंध बना सकेगी, जो इस अधिनियम के उपबंधों से असंगत न हों और जो उसे कठिनाई को दूर करने के लिए आवश्यक और समीचीन प्रतीत होते हों। परंतु: ऐसा कोई भी आदेश इस अधिनियम के प्रारंभ से दो वर्ष की अवधि की समाप्ति के बाद नहीं किया जाएगा।

आपकी टिप्पणी: यह धारा एक सुरक्षा कवच की तरह काम करती है। यदि आरटीआई कानून को लागू करते समय कोई अप्रत्याशित समस्या आती है, तो केंद्र सरकार उसे दूर करने के लिए नियम बना सकती है, बशर्ते वे मूल अधिनियम के खिलाफ न हों। यह शक्ति कानून लागू होने के बाद केवल 2 साल के लिए थी, जिससे इसका दुरुपयोग न हो।

Original Text (English): If any difficulty arises in giving effect to the provisions of this Act, the Central Government may, by order published in the Official Gazette, make such provisions not inconsistent with the provisions of this Act as appear to it to be necessary or expedient for removal of the difficulty. Provided that no such order shall be made after the expiry of a period of two years from the date of the commencement of this Act.

Your Note: This section acts as a safeguard. If any unforeseen difficulty arises while implementing the RTI Act, the Central Government can make rules to overcome it, as long as they are not inconsistent with the original Act. This power was limited to two years from the commencement of the Act to prevent its misuse.

2. आदेशों को संसद में रखना (धारा 30(2))

मूल पाठ (हिंदी): इस धारा के तहत किया गया प्रत्येक आदेश, किए जाने के तुरंत बाद, यथाशीघ्र संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जाएगा।

आपकी टिप्पणी: यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि कठिनाई को दूर करने के लिए सरकार द्वारा बनाए गए किसी भी आदेश को तुरंत संसद के सामने पेश किया जाए। यह विधायी समीक्षा को अनिवार्य करता है, जिससे सरकार की शक्तियों पर नियंत्रण बना रहे।

Original Text (English): Every order made under this section shall, as soon as may be after it is made, be laid before each House of Parliament.

Your Note: This provision ensures that any order made by the government to remove difficulties is promptly presented before Parliament. This mandates legislative review, keeping the government's powers in check.


भारतीय लोकतंत्र में जनता के अधिकार और आवश्यक बातें

  • जनता मालिक है: भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) 1860 की धारा 21 के तहत सभी लोक सेवक "जनता के नौकर" हैं। यह हर अधिकारी पर प्रभावी है।
  • सूचना का अधिकार: सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 मात्र ₹10 के शुल्क के साथ जनता को वांछित जानकारी प्राप्त करने का मौलिक अधिकार देता है।
  • आवेदन का अधिकार (धारा 6(1)): आपको संबंधित लोक सूचना अधिकारी से जानकारी मांगने का अधिकार है।
  • प्रथम अपील (धारा 19(1)): यदि आपको जानकारी नहीं मिलती, गलत, अधूरी या भ्रामक मिलती है, तो आप संबंधित लोक सूचना अधिकारी के वरिष्ठ अधिकारी यानी प्रथम अपीलीय प्राधिकारी के पास अपील कर सकते हैं।
  • द्वितीय अपील (धारा 19(3)): यदि प्रथम अपील से भी संतोषजनक परिणाम नहीं मिलता, तो आप केंद्रीय सूचना आयोग (केंद्र सरकार के मामलों में) या राज्य सूचना आयोग (राज्य सरकार के मामलों में) में द्वितीय अपील दायर कर सकते हैं।
  • शिकायत का अधिकार (धारा 18): यदि लोक सूचना अधिकारी या प्रथम अपीलीय प्राधिकारी सूचना देने में असफल होते हैं, तो आप सीधे केंद्रीय या राज्य सूचना आयोग में शिकायत दर्ज कर सकते हैं।
  • पुनरावलोकन का अधिकार (धारा 25(ग)): सूचना आयोग के आदेश से असंतुष्ट होने पर आप उनके खिलाफ "पुनरावलोकन-पत्र" दायर कर सकते हैं।
  • जवाबदेही और बर्खास्तगी: आरटीआई अधिनियम की धारा 14 और 17 के तहत, मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों को भी बर्खास्त किया जा सकता है। राष्ट्रपति (केंद्रीय आयोग के लिए) या राज्यपाल (राज्य आयोग के लिए) सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश की जांच रिपोर्ट के आधार पर उन्हें पद से हटा सकते हैं।
  • दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई: आरटीआई अधिनियम की धारा 21 और आईपीसी की धारा 52 के तहत, यदि कोई लोक सेवक जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण तरीके से कार्य करता है, तो उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने का अधिकार भी जनता को है।

इन अधिकारों को जानकर और उनका उपयोग करके, आप अपनी आवाज को मजबूत कर सकते हैं और अधिकारियों को जनता के प्रति जवाबदेह बना सकते हैं।

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