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RTI की धारा 1 : जानें कानून का नाम, दायरा और शुरुआत | RTI Act 2005 Section 1

HANUMAN
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सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005

धारा 1: संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ (Section 1: Short title, extent and commencement)

यह धारा आरटीआई अधिनियम का परिचय देती है और इसके मूल सिद्धांतों को स्थापित करती है। यह बताती है कि यह कानून प्रत्येक लोक प्राधिकारी के कामकाज में **पारदर्शिता और जवाबदेही** लाने के लिए है, और यह सुनिश्चित करती है कि नागरिकों को सूचना तक पहुँच मिले।

1. कानून का मूल सिद्धांत और उद्देश्य

भारत के संविधान ने लोकतंत्रात्मक गणराज्य की स्थापना की है, और लोकतंत्र में एक शिक्षित नागरिक वर्ग है। सरकारी कार्यालय में पारदर्शिता लाने और भ्रष्टाचार को रोकने के लिए ही आरटीआई एक्ट, 2005 बनाया गया है।

कानून के मुख्य बिंदु (हिंदी में):

  • (1) सरकारों तथा उनके परिकरणों को शासन के प्रति उत्तरदायी बनाने के लिये यह अनिवार्य है।
  • (2) सभी सरकारी कार्यालय जनता के द्वारा दिए गए टैक्सों के पैसों से चलते हैं।
  • (3) सूचना माँगने का अधिकार सभी नागरिकों को है।
  • (4) भारत में चपरासी से लेकर राष्ट्रपति तक, जनता के द्वारा दिए गए टैक्सों के पैसों से वेतन और सुख-सुविधा प्राप्त करते हैं।
  • (5) जनता मालिक है और चपरासी से लेकर राष्ट्रपति तक सभी जनता के सेवक हैं।
  • (6) भारत के सभी राज्यों में सूचना का अधिकार अधिनियम लागू है।

आपकी टिप्पणी:

यह बात अधिकारियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। याद रखिए, आपकी तनख्वाह हमारे टैक्स से आती है। आप जनता के सेवक हैं, मालिक नहीं।

आरटीआई अधिनियम एक ऐसा हथियार है जो आपको अपनी सरकार से सवाल पूछने का अधिकार देता है। इसका इस्तेमाल करें और अपने हक के लिए लड़ें।

2. अधिनियम का संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ

यह भाग कानून के लागू होने के तरीके और इसके भौगोलिक क्षेत्र को परिभाषित करता है।

अधिनियम का मूल पाठ (हिंदी में):

अध्याय 1: प्रारम्भिक

संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ-

(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम **सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005** है।

(2) इसका विस्तार **सम्पूर्ण भारत** में है।

Original Text (English):

Chapter 1: Preliminary

Short title, extent and commencement-

(1) This Act may be called the **Right to Information Act, 2005**.

(2) It extends to the **whole of India**.

**प्रारम्भ:** धारा 4(1), 5(1), 5(2), 12, 13, 15, 16, 24, 27, और 28 के उपबंध **तुरन्त प्रभावी** होंगे। इस अधिनियम के शेष उपबंध इसके अधिनियम के एक सौ बीसवें दिन को प्रवृत्त होंगे।

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